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श्री भगवती स्तोत्र के पाठ का हिंदी में अर्थ एवं फायदे - Shri Bhagawati Stotr lyrics with meaning & Benifits in hindi

 

श्री भगवती स्तोत्र के पाठ का हिंदी में अर्थ एवं फायदे 

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श्री भगवती  स्तोत्र

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श्री भगवती स्तोत्र के  पाठ का  हिंदी में अर्थ -

Shri Bhagawati Stotr lyrics with meaning in hindi.


जय भगवति देवि नमो वरदे, जय पापविनाशिनि बहुफलदे । जय शुम्भ-निशुम्भ-कपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ।।1।।

अर्थ:हे वरदायिनी देवि! हे भगवति! तुम्हारी जय हो। हे पापों को नष्ट प्रदान करने वाली और अनंत फलों को प्रदान करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो! हे शुम्भ-निशुम्भ के मुण्डों को धारण करनेवाली देवी! तुम्हारी जय हो। हे मनुष्यों को पीड़ा हरनेवाली देवी! मैं तुम्हें प्रणाम करता/करती हूं।।1।।

जय चन्द्रदिवाकर नेत्रधरे, जय पावक भूषितवक्त्रवरे । जय भैरवदेहनिलीनपरे, जय अन्धकदैत्य विशोषकरे ।।2।।

अर्थ:हे सूर्य-चंद्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान दैदीप्यमान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो। हे भैरव शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुर का शोषण करने वाली देवी तुम्हारी जय हो, जय हो।।2।।

जय महिषविमर्दिनिशूलकरे, जय लोकसमस्तकपापहरे । जय देवि पितामहविष्णुनते, जय भास्करशक्रशिरोsवनते ।।3।।

अर्थ:हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इन्द्र से नमस्कृत होने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।।3।। 


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जय षण्मुख सायुधईशनुते, जय सागर गामिनि शम्भुनुते । जय दु:खदरिद्रविनाशकरे, जय पुत्रकलत्रविवृद्धकरे ।।4।।

अर्थ:सशस्त्र शंकर और कार्तिकेयजी द्वारा वन्दित होने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलनेवाली गंगारूपिणी देवी! तुम्हारी जय हो। दुख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र कलत्र की वृद्धि करने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।।4।।

जय देवि समस्त शरीरधरे, जय नाक विदर्शिनि दु:खहरे । जय व्याधि विनाशिनि मोक्ष करे, जय वांछित दायिनि सिद्धिवरे ।।5।।

अर्थ:हे देवी! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन कराने वाली और दुख हारिणी हो। हे व्याधिनाशिनी देवी! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवांछित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवी! तुम्हारी जय हो।।5।।

एतव्द्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि: । गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा ।।6।।

अर्थ:माता के कोई भी भक्त, जो कहीं भी रहकर पवित्र भाव से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती सदा ही प्रसन्न रहती हैं।।6।।


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